दुर्गा आरती: सनातन धर्म में माँ दुर्गा को शक्ति का स्वरुप माना गया है। इनका एक नाम माता आदिशक्ति भी है। वैसे तो माँ दुर्गा की आराधना, आरती हर रोज करनी चाहिए। पर नवरात्री में माता के नौ रूपों की उपासना करना और आरती करने का विशेष महत्व होता है। साधक नौ दिनों के लिए उपवास भी रखते हैं। इन दिनों माता की सुबह शाम आरती करने से, पाप नष्ट हो जाते हैं और संकटों का नाश होता है। साधक को सुख, संपत्ति, का लाभ होता है। जो व्यक्ति आरती में शामिल होते हैं, उनके ऊपर भी माँ दुर्गा की कृपा होती है। आईये हम सब मिलकर माँ दुर्गा की आरती गाते हैं और अपने मंगल की कामना करते हैं।

दुर्गा आरती
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी।
तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी।।1।।
जय अम्बे गौरी,…।।
मांग सिंदूर बिराजत, टीको मृगमद को।
उज्ज्वल से दोउ नैना, चंद्रबदन नीको।।2।।
जय अम्बे गौरी,…।।
कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै।
रक्तपुष्प गल माला, कंठन पर साजै।।3।।
जय अम्बे गौरी,…।।
केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्परधारी।
सुर-नर मुनिजन सेवत, तिनके दुःखहारी।।4।।
जय अम्बे गौरी,…।।
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती।
कोटिक चंद्र दिवाकर, राजत समज्योति।।5।।
जय अम्बे गौरी,…।।
शुम्भ निशुम्भ बिडारे, महिषासुर घाती।
धूम्र विलोचन नैना, निशिदिन मदमाती।।6।।
जय अम्बे गौरी,…।।
चण्ड-मुण्ड संहारे, शौणित बीज हरे।
मधु कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे।।7।।
जय अम्बे गौरी,…।।
ब्रह्माणी, रुद्राणी, तुम कमला रानी।
आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी।।8।।
जय अम्बे गौरी,…।।
चौंसठ योगिनि गावत, नृत्य करत भैरू।
बाजत ताल मृदंगा, अरू बाजत डमरू।।9।।
जय अम्बे गौरी,…।।
तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता।
भक्तन की दुःख हरता, सुख सम्पत्ति करता।।10।।
जय अम्बे गौरी,…।।
भुजा चार अति शोभित, खड्ग खप्परधारी।
मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी।।11।।
जय अम्बे गौरी,…।।
कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती।
श्री मालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योति।।12।।
जय अम्बे गौरी,…।।
अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै।
कहत शिवानंद स्वामी, सुख-सम्पत्ति पावै।।13।।
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी।।
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