दुर्गा सप्तशती: सनातन धर्म में नवरात्री का बहुत महत्व है। नवरात्र के नौ दिन माँ दुर्गा की उपासना की जाती है। माता को प्रसन्न करने के लिए इन नौ दिनों तक दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाता है।

दुर्गा सप्तशती: सनातन धर्म में नवरात्री का बहुत महत्व है। नवरात्र के नौ दिन माँ दुर्गा की उपासना की जाती है। माता को प्रसन्न करने के लिए इन नौ दिनों तक दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाता है। आईये इस आर्टिकल के द्वारा हम जानेंगे की दुर्गा सप्तशती का पाठ कैसे किया जाता है ?, माँ दुर्गा की पूजन विधि क्या है ?, दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से क्या लाभ होता है ?
हर साल प्रत्यक्ष रूप से दो नवरात्री मनाये जाते हैं। एक शारदीय नवरात्री जो अश्विन माह में होती है और एक चैत्र नवरात्री, जो की चैत्र महीने में मनाई जाती है। नवरात्री में माँ आदिशक्ति के नौ स्वरुप की पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है की नवरात्री में माँ दुर्गा की पूजा उपासना करने से साधक की हर मनोकामना पूर्ण होती है। जीवन में आ रही बाधा और संकटों का निवारण होता है। नवरात्री के पहले दिन कलश स्थापना की जाती है और फिर पुरे नियम, विधि विधान से नौ दिनों तक माँ आदिशक्ति के नौ रूपों की उपासना की जाती है।
दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से क्या लाभ होता है ?
नवरात्री में दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से माँ आदिशक्ति की विशेष कृपा प्राप्त होती है। दुर्गा सप्तशती में माँ दुर्गा के चरित्र की अद्भुत गाथा कही गयी है। जो भी साधक नवरात्री में माँ दुर्गा की पूजा उपासना करता है, व्रत रखता है और दुर्गा सप्तशती का पाठ करता है उसके जीवन के सारे संकट दूर होते हैं और सुख – समृद्धि में वृद्धि होती है।
माँ दुर्गा के पूजा करने की विधि
- पहले दिन शुभ मुहूर्त में माँ दुर्गा की मूर्ति या फिर चित्र की स्थापना करें।
- माँ दुर्गा के लिए कलश की स्थापना करें।
- माँ दुर्गा को लाल चुनरी, श्रृंगार के सामान, जौ, अछत, रोली, चन्दन, पान, सुपारी, नारियल, फल, फूल, आदि, अर्पित करें।
- घी या तिल के तेल का दीपक जलाये।
- आप नौ दिनों के लिए अखंड ज्योत भी जला सकते हैं। जो ज्यादा शुभ होता है।
- आप अपने गुरु, ईस्ट देव, गणेश जी का ध्यान करें। भगवन शंकर और तमा देवी – देवताओ का ध्यान करें।
- माँ दुर्गा के समक्ष दुर्गा सप्तशती का पाठ आरम्भ करें।
दुर्गा सप्तशती पाठ करने की विधि
कलश स्थापना और गणेश जी की उपासना के बाद दुर्गा सप्तशती का पाठ आरम्भ करें। दुर्गा सप्तशती में कुल 13 अधयाय और 700 श्लोक होते हैं। 13 अधयाय को तीन भाग में में बाँटा गया है जहाँ महा काली, महा लक्ष्मी, और महा सरस्वती नाम से चरित्रों का वर्णन है। प्रथम चरित्र में पहला अधयाय, माध्यम चरित्र में दूसरा, तीसरा और चौथा अधयाय, और बाकी के सारे अधयाय उत्तम चरित्र में रखा गया है। कवच, अर्गला स्त्रोत्रं और किलक का पाठ करने के बाद ही साधक को दुर्गा सप्तशती के अधयाय का आरम्भ करना चाहिए। और अधयाय का पाठ करने के बाद सिद्ध कुंजिका स्त्रोत्र, छमा प्रार्थना और माँ दुर्गा की आरती जरूर करनी चाहिए। जो भी साधक पूरा 13 अधयाय का पाठ हर रोज करने में सक्षम नहीं हैं, वे दुर्गा सप्तशती का पाठ निम्न क्रम से कर सकते हैं।
- प्रथम दिन (प्रतिपदा)- 1 अधयाय
- द्वितीय दिन (द्वितीया)- 2 और 3 अधयाय
- तृतीय दिन (तृतीया)- 4 अधयाय
- चतुर्थ दिन (चतुर्थी)- 5, 6,7 और 8 अधयाय
- पंचम दिन (पंचमी)- 9 और 10 अधयाय
- छठा दिन (षष्ठी)- 11 अधयाय
- सप्तम दिन (सप्तमी)- 12 और 13 अधयाय
- आठवा दिन (अष्टमी)- छमा प्रार्थना, हवन
- नवम दिन (नवमी)- कन्या भोज
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दुर्गा सप्तशती के १३ अधयाय और उन्हें पाठ करने से मिलने वाले फल
अथ श्री दुर्गा सप्तशती अध्याय 01: – महर्षि ऋषि का राजा सुरथ और समाधि को देवी की महिमा बताना
पाठ करने से मिलने वाले फल: यदि साधक को किसी भी प्रकार की चिंता है, किसी भी प्रकार का मानसिक विकार अर्थात मानसिक कष्ट है तो दुर्गा सप्तशती के प्रथम अध्याय के पाठ से इन सभी मानसिक विचारों और दुष्चिंताओं से मुक्ति मीलती है। मनुष्य की चेतना जागृत होती है और विचारों को सही दिशा मिलती है। किसी भी प्रकार के नकारात्मक विचार हावी नहीं होते है। इस प्र्कार दुर्गा सप्तशती के पहले अध्याय से हर प्रकार की मानसिक चिंताओं से मुक्ति मिलती है।
अथ श्री दुर्गा सप्तशती अध्याय 02: देवताओ के तेज से देवी का पादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
पाठ करने से मिलने वाले फल: दुर्गा सप्तशती के दूसरे अध्याय के पाठ से मुकदमे में विजय मिलती है। किसी भी प्रकार का झगड़ा हो, वाद विवाद हो, उसमें शांति आती है, और मान-सम्मान की रक्षा होती है। दूसरा पाठ विजय के लिए होता है।
अथ श्री दुर्गा सप्तशती अध्याय 03: सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
पाठ करने से मिलने वाले फल: तीसरे अध्याय का पाठ शत्रुओं से छुटकारा प्राप्त करने के लिए किया जाता है। शत्रुओं का भय व्यक्ति के जीवन में बहुत पीड़ा का कारण होता है क्योंकि भय ग्रस्त व्यक्ति चाहे वो कितनी भी सुख-सुविधा में रह रहा हो, कभी भी सुखी नहीं रह सकता । अतः इस अध्याय के पाठ करने से आंतरिक और बाहरी दोनों प्रकार के भय नष्ट हो जाते हैं। यदि किसी के गुप्त शत्रु हैं जिनका पता नहीं चलता और जो सबसे ज्यादा हानि पहुंचा सकते हैं तो ऐसे शत्रुओं से छुटकारा पाने के लिए तीसरे अध्याय का पाठ करना सर्वोत्तम होता है।
अथ श्री दुर्गा सप्तशती अध्याय 04: इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
पाठ करने से मिलने वाले फल: दुर्गा सप्तशती का चौथा अध्याय माँ भगवती की भक्ति प्राप्त करने के लिए उनकी शक्ति, उनकी ऊर्जा को प्राप्त करने के लिए और उनके दर्शनों के लिए सर्वोत्तम है। वैसे तो इस ग्रंथ के प्रत्येक अध्याय के प्रत्येक शब्द में माता की ऊर्जा निहित है, फिर भी निष्काम भक्ति का अनुभव करने के लिए और दर्शनों के लिए यह अध्याय सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
अथ श्री दुर्गा सप्तशती अध्याय 05: देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
पाठ करने से मिलने वाले फल: पांचवे अध्याय के प्रभाव से हर प्रकार के भय का नाश होता है। चाहे वो भूत-प्रेत की बाधा हो, बुरे स्वप्न परेशान करते हो, या व्यक्ति हर जगह से परेशान हो, तो पांचवें अध्याय के पाठ से इन सभी चीजों से मुक्ति मिलती है।
अथ श्री दुर्गा सप्तशती अध्याय 06: धूम्रलोचन वध
पाठ करने से मिलने वाले फल: इस अध्याय का पाठ किसी भी प्रकार का तंत्र बाधा को हटाने के लिए किया जाता है । इसके अतिरिक्त यदि आपको लगता है कि आपके ऊपर जादू-टोना किया गया हो, आपके परिवार को बांध दिया हो, या राहु और केतु से आप पीड़ित हो तो छठवें अध्याय का पाठ इन सभी कष्टों से आपको मुक्ति दिलाता है।
अथ श्री दुर्गा सप्तशती अध्याय 07: चण्ड और मुण्ड का वध
पाठ करने से मिलने वाले फल: किसी भी विशेष कामना की पूर्ति के लिए सातवाँ अध्याय सर्वोत्तम है। सच्चे और निर्मल ह्र्दय से देवी की पूजा की जाती है और सातवें अध्याय का पाठ किया जाता है तो व्यक्ति की कामना पूर्ति अवश्य होती हैं।
अथ श्री दुर्गा सप्तशती अध्याय 08: रक्तबीज वध
पाठ करने से मिलने वाले फल: यदि आपका कोई प्रिय आपसे बिछड़ गया है और आप उसे ढूँढकर थक चुके हैं तो आठवें अध्याय का पाठ चमत्कारिक फल प्रदान करता है। इसके अलावा वशीकरण के लिए भी इस अध्याय का पाठ किया जाता है, लेकिन वशीकरण सही व्यक्ति, सही मंशा के साथ किया जा रहा हो, इसका ध्यान रखना बहुत आवश्यक है, नहीं तो लाभ के स्थान पर हानि भी हो सकती है। इसके अलावा धन लाभ के लिए भी आठवें अध्याय का पाठ बेहद शुभ माना जाता है।
अथ श्री दुर्गा सप्तशती अध्याय 09: निशुम्भ वध
पाठ करने से मिलने वाले फल: नौवा अध्याय का पाठ संतान प्राप्ती के लिए किया जाता है। पुत्र प्राप्ति के लिए या संतान से संबंधित किसी भी परेशानी के निवारण के लिए दुर्गा सप्तशती के नवम अध्याय का पाठ किया जाता है। इसके अलावा संतान की उन्नति,प्रगति के लिए तथा किसी भी प्रकार की खोई हुई अमूल्य वस्तु की प्राप्ति के लिए भी नौवें अध्याय का पाठ करना उत्तम होता है। यह आपकी मनोकामना पूर्ण करने में सहायक होता है।
अथ श्री दुर्गा सप्तशती अध्याय 10: शुम्भ वध
पाठ करने से मिलने वाले फल: यदि संतान गलत रास्ते पर जा रही है तो ऐसी भटकी हुई संतान को सही रास्ते पर लाने के लिए दसवां अध्याय सर्वश्रेष्ठ है। अच्छे और योग्य पुत्र की कामना के साथ दसवें अध्याय का पाठ किया जाए, तो योग्य संतान की प्राप्ति होती हैं और प्राप्त संतान सही रास्ते पर चलती है।
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अथ श्री दुर्गा सप्तशती अध्याय 11: देवताओं का देवी की स्तुति करना और देवी का देवताओं को वरदान देना
पाठ करने से मिलने वाले फल: व्यापार में हानि हो रही है, धन की हानि हो रही हो, तो इस अध्याय का पाठ करना चाहिए। इसके प्रभाव से अनावश्यक खर्चे बंद हो जाते हैं और घर में सुख शांति का वास रहता है।
अथ श्री दुर्गा सप्तशती अध्याय 12: देवी के चरित्रों के पथ का माहात्म्य
पाठ करने से मिलने वाले फल: इस अध्याय का पाठ करने से व्यक्ति को मान-सम्मान की प्राप्ति होती है। इसके अलावा जिस व्यक्ति पर गलत दोषारोपण कर दिया जाता है, जिससे उसके सम्मान की हानि होती है तो ऐसी स्थिती से बचने के लिए दुर्गा सप्तशती के बारहवें अध्याय का पाठ करना चाहिए। रोगों से मुक्ति के लिए भी इस अध्याय का पाठ करना असीम लाभकारी है। कोई भी ऐसा रोग जिससे आप वर्षों से दुखी हैं और डॉक्टर की दवाइयों का कोई असर नहीं हो रहा है तो इस अध्याय का पाठ आपको अवश्य करना चाहिए।
अथ श्री दुर्गा सप्तशती अध्याय 13: राजा सुरथ और वैश्य को देवी का वरदान
पाठ करने से मिलने वाले फल: तेहरवें अध्याय का पाठ माँ दुर्गा की भक्ति प्रदान करता है। किसी भी साधना के बाद माँ की पूर्ण भक्ति के लिए इस अध्याय का पाठ अति महत्वपूर्ण है। किसी विशेष मनोकामना को पूर्ण करने के लिए, किसी भी इच्छित वस्तु की प्राप्ति के लिए इस अध्याय का पाठ अत्यंत प्रभावी माना गया है।